होली
होली हुड़दंग
ये दोहे हैं उल्टे – पुल्टे, मूरखता से परिपूर ।
फिर भी यदि समझ न सके, मेरा क्या कसूर ॥
होली का दिन है, जी भर मना ले हुड़दंग ।
रंग लगाने के बहाने, छू ले किसी का अंग प्रत्यंग ॥
भूल जा सारी शालीनता, उतार दे अपने – अपने मुखौटे ।
हदें तू अपनी पार कर दे , फिर भी तेरा मान न घटे ॥
आज किसी की बंदिस नहीं, कर ले अपनी मन मर्जी।
किसी दिल वालों की चौखट पर लगा दे अपनी अर्जी॥
उछल कूद कर बंदर की भाँति, रिझा ले अपने मीत को।
गर्दभ राग भी चलेगा आज, कोस मत बेसुरे संगीत को ॥
कर्कशता भी चलेगी, सुगम संगीत के रूप में।
सुन्दर – कुरूप का विभेद छॊड़, मीत बनालो बैरी में॥
बुढ़ऊ बन गया देवर, नजर लग रही जवानी में|
मुश्किल है यह तपिश, आग लग रही पानी में॥